अर्थव्यवस्था के जख्मों पर मरहम लगाने का वक्त


 


 


हाल ही में 5 अप्रैल को भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के द्वारा प्रकाशित किए गए सीईओ स्नैप पोल से यह खुलासा हुआ है कि कोरोना वायरस के प्रकोप और लॉकडाउन का देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव दिख रहा है। इससे उद्योग व कारोबार के राजस्व में भारी गिरावट आ रही है। रोजगार पर प्रतिकूल असर हो रहा है। स्थिति यह है कि उद्योगों के उत्पादन से वितरण तक सभी चरणों में कदम-कदम पर मुश्किलें दिखाई दे रही हैं। ऐसे में उद्योग व कारोबार को बचाने के लिए सरकार के द्वारा विशेष और व्यापक राहत पैकेज जल्दी ही दिया जाना जरूरी है। इसी तरह 4 अप्रैल को देश में कार्यरत विभिन्न क्षेत्रों की 25 बड़ी कंपनियों के सीईओ के बीच कराए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि लॉकडाउन से भारत का उद्योग कारोबार चारों ओर से मुश्किलों से गिर गया है। ऐसे में अब तक सरकार के द्वारा घोषित किए गए आर्थिक पैकेज और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा दी गई बैंकिंग राहत पर्याप्त नहीं हैकोरोना वायरस के कारण उद्योग-कारोबार को हुए भारी नुकसान से निपटने के लिए सरकार द्वारा एक व्यापक राहत पैकेज घोषित किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि इस सर्वेक्षण में भारत के उद्योग और कारोबार जगत के जिन सीईओ ने भाग लिया, उनमें देश के वित्तीय सेवा से लेकर बैंक, ऊर्जा, वाहन, बंदरगाह, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी, इंटरनेट और रियल एस्टेट क्षेत्र की कंपनियों के सीईओ शामिल थे। उद्योग जगत के इन सीईओ का कहना है कि रिजर्व बैंक द्वारा ऋण के भुगतान पर 3 महीने की छूट की अवधि बढ़ाकर कम से कम 1 वर्ष की जानी चाहिए। इसके अलावा कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए कंपनियों से फिलहाल कर नहीं लिया जाना चाहिए या उनके आयकर पर उपयुक्त कटौती की जानी चाहिए। इस सर्वेक्षण में सीईओ के द्वारा यह भी मांग की गई कि सरकार द्वारा देश की जीडीपी में योगदान देने वाले सभी घटकों को जीडीपी के करीब 10 प्रतिशत का हिस्सा समग्र आर्थिक पैकेज के रूप में दिया जाना चाहिए। चूंकि भारतीय दवा उद्योग, वाहन उद्योग, केमिकल उद्योग, खिलौना कारोबार तथा इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे अनेक कारोबार प्रमुख रूप से चीन से आयातित कच्चे माल एवं वस्तुओं पर आधारित हैं और अब इनकी आपूर्ति रुक गई है, ऐसे में ये उद्योग-कारोबार मुश्किलों का सामना करते हुए दिखाई दे रहे हैं। इन क्षेत्रों में रोजगार चुनौतियां बढ़ गई हैं। इतना ही नहीं, हम चीन को जिन वस्तुओं का निर्यात करते हैं, वे उद्योग-कारोबार भी कोरोना वायरस के कारण बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। चीन सहित विभिन्न देशों को निर्यात के सौदे रुक गए हैं, जिससे इस क्षेत्र में भी नई रोजगार चुनौतियां उत्पन्न हो गई हैं। दरअसल, न केवल चीन पर आधारित आयात-निर्यात घटा है, वरन देश के सम्पूर्ण आंतरिक उद्योग-कारोबार और विदेश व्यापार में भी कमी आ गई है। ऐसे में कई उद्योग- कारोबार कर्मचारियों को बिना वेतन अवकाश भी देते हुए दिखाई दे रहे हैं। इतना ही नहीं, दैनिक मजदूरी करने वालों को काम की कमी हो गई है। लॉकडाउन के कारण उद्योग-कारोबार निराशाजनक दौर में पहुंच गए हैं। देश के उद्योग-कारोबार सेवा क्षेत्र और कृषि क्षेत्र में रोजगार की चिंताएं बढ़ गई हैं। देश के कोने-कोने में छोटे और बड़े शहरों से हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर अपने- अपने गांव की ओर जाते हुए दिखाई दे रहे हैं। रोजगार से संबंधित ऐसे कई चिंताजनक दृश्य बढ़ती हुई रोजगार चुनौती को प्रस्तुत करते हुए दिखाई दे रहे हैं। कोरोना प्रकोप से देश के उद्योग-कारोबार में कार्यरत लोगों की नौकरियां संबंधी चिंताएं बढ़ गई हैं। देश के कुल कार्यबल में गैर-संगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी 90 फीसदी है। साथ ही देश के कुल कार्यबल में 20 फीसदी लोग रोजाना मजदूरी प्राप्त करने वाले हैं। इन सबके कारण देश में चारों ओर रोजगार संबंधी चिंताएं और अधिक उभरकर दिखाई दे रही हैं। निश्चित रूप से लॉकडाउन देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। यदि हम अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव का अध्ययन करें तो पाते हैं कि पिछले मार्च महीने में देश में वाहनों की बिक्री में 50 फीसदी की कमी आई। जीएसटी की प्राप्ति में 20 फीसदी की गिरावट आई। पेट्रोल और डीजल की खपत में 20 प्रतिशत की कमी आई। बिजली की खपत में 30 प्रतिशत की कमी आई। स्थिति यह है कि लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों में बड़ा संकुचन आ गया है। ऐसे में सरकार को यह रणनीति बनानी होगी कि विभिन्न उद्योगों में कृषि और सेवा क्षेत्र में रोजगार और नौकरियों के अवसर कैसे बनाए रखे जा सकें। कोरोना प्रकोप से देश में बढ़ रही रोजगार चुनौतियां का सामना करने के लिए महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम जरूरी हैं, जिन उद्योगों में उत्पादन प्रभावित होने से लोगों को रोजगार जा रहा है, उन उद्योगों को सरकारी सहारा दिया जाना जरूरी है। सरकार को यह निगरानी रखनी होगी कि उद्योग- कारोबार अपने कर्मचारियों को बिना वेतन अवकाश पर न भेजे। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि लॉकडाउन के कम होने और नियंत्रण घटने के बाद भी स्थितियों में सुधार धीरे-धीरे ही आएगा। संकुचित हुई अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ने में कोई एक वर्ष का समय भी लग सकता है। निश्चित रूप से बंद पड़ी कंपनियों को दोबारा काम शुरू करने में समय लगेगा। उद्योग व कारोबार के अनुकूल वातावरण के लिए भी लंबा समय लगेगा। लॉकडाउन के कारण रोजगार खोने वाले लोगों के परिवारों की क्रय शक्ति बढ़ने में समय लगेगा। निवेश को बढ़ाने में भी समय लगेगा। बैंकों के ऋण वितरण में रुकावटें दूर करने और बैंकों की सामान्य कार्यप्रणाली बहाल करने में भी बड़ा समय लगेगा। इन सबके कारण वित्तवर्ष 202021 में कई उद्योग कारोबार और बड़ी कंपनियां यह अनुभव करते हुए दिखाई देंगे कि यह उनके लिए एक खोया हुआ वर्ष बनकर रह गया है। हम आशा करें कि जिस तरह अमेरिका, इटली और जापान जैसे देशों ने कोरोना वायरस से प्रभावित कर्मचारियों को बेरोजगारी लाभ देने की योजना बनाई है, उसी तरह भारत सरकार भी ऐसी योजना बनाएगी। निश्चित रूप से ऐसे रणनीतिक कदमों से रोजगार चुनौतियों का सामना किया जा सकेगा और अर्थव्यवस्था को मंदी के दौर से बचाया जा सकेगा। हम आशा करें कि सरकार द्वारा कोरोना संकट की चुनौतियों के बीच जिस तरह अब तक बचाव के जो उपाय अपनाए हैं, वे लाभप्रद रहे है, उसी तरह सरकार अगले चरण में प्रवेश करते समय सफलतापूर्वक आगे बढ़ेगी। उम्मीद करें कि सरकार लॉकडाउन के बीच उद्योग-कारोबार की लगातार बढ़ रही चुनौतियों और बढ़ती हुई रोजगार मुश्किलों के बीच शीघ्रतापूर्वक उद्योग-कारोबार के लिए विशेष राहत पैकेज घोषित करेगी।