दुनिया में सर्वाधिक सफल और बेहतरीन इलाज पद्धति एलोपैथी को माना जाता है। लेकिन सर्वथा आधुनिक मानी जाने वाली एलोपैथी अब तक कोरोना के वायरस को मारने, रोकने या खत्म करने का अभी तक उपाय नहीं खोज पाई है। इतिहास गवाह है, मानवता या मनुष्य पर आया हर संकट काल उसकी परीक्षा की घड़ी भी होता है। इसी घड़ी में मनुष्य या मानवता मौजूद समस्या से जूझने की नई राह तलाशती है और उसे परास्त करते हुए आगे बढ़ जाती है। कोरोना के खिलाफ जारी जंग भी जीती जाएगी, लेकिन बेहतर होता कि इस जंग में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों का सहारा लिया जाता तो कम से कम भारत जैसे देश में यह जंग थोड़ी आसान हो जाती। आयुर्वेद को आयुष यानी जीवन का वेद यानी शास्त्र कहा जाता है। इसके मूल में जीवनी शक्ति को मजबूत बनाने की बात है। दिलचस्प यह है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति रोगी का ही उपचार करती है, लेकिन अथर्ववेद का उपवेद माना जाने वाला आयुर्वेद सिर्फ आतुर यानी रोगी का ही इलाज नहीं करता, बल्कि स्वस्थ व्यक्ति को भी बेहतर एवं स्वस्थ जीवन गुजारने का तरीका सुझाता है। कोरोना को लेकर अभी तक जितने भी शोध हुए हैं, उनका निष्कर्ष है कि इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर इस रोग से बचा जा सकता है। दरअसल, आयुर्वेद की नजर में वही जीवनी शक्ति है। आयर्वेद की सबसे ज्यादा ख्यात औषधि च्यवनप्राश के उपयोग से होने वाले फायदे की कहानी सबको पता है। उसका नाम च्यवन इसलिए पड़ा, क्योंकि उसका सेवन करके च्यवन ऋषि युवा हो गए थे। इसका मतलब यह है कि उनकी आयु बढ़ गई थी और च्यवनप्राश ने उनकी जीवनी शक्ति बढ़ा दी थी। एलोपैथी चिकित्सा पद्धति में अभी तक जीवनी शक्ति बढ़ाने वाली किसी औषधि के बारे में जानकारी नहीं है। लेकिन आयुर्वेद और यूनानी पद्धति इसका दावा कर सकती हैं। कोरोना से लड़ाई में अव्वल तो होना चाहिए था कि जीवनी शक्ति बढ़ाने वाली अपनी सर्वथा परीक्षित पद्धति का भी सहयोग लिया जाता। आयुष मंत्रालय के तहत कार्यरत देशभर के प्रशिक्षित आयुष विज्ञानियों का भी सहयोग लिया जाता। जब भारत में कोरोना के मामले बढ़ने लगे तो आयुष मंत्रालय द्वारा प्रतिरोधक क्षमता या जीवनी शक्ति बढ़ाने वाले उपायों को प्रचारित किया जाने लगा, जिसमें हर्बल टी के अलावा सोंठ, मुनक्का, दालचीनी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पीना, सुबह-शाम नाक तिल या नारियल का तेल डालना, गले में खराश के लिए पुदीना की पत्ती या अजवायन का भाप लेना, हल्दी, जीरा, धनिया और लहसुन का लगातार सेवन करना, योग और प्राणायाम करना आदि के सुझाव शामिल हैं। भारतीय देहाती जीवन ने हजारों-हजार साल की लंबी यात्रा में प्रकृति के साहचर्य से अपने रोगों से छुटकारे के लिए अनुभवजन्य नुस्खे भी अख्तियार किए हैं। जन-जन में पता है कि कफ, खांसी के कठिन मामलों में भी हल्दी का प्रयोग राहत पहुंचाने वाला होता है। कोरोना का वायरस भी कफ बढ़ाता है। हल्दी और भाप इसकी रोकथाम कर सकते हैं। आयुष मंत्रालय की सलाह जारी होने से पहले इन नुस्खों को आम लोगों ने कम से कम कोरोना के रोकथाम के लिए प्रचारित करना शुरू कर दिया था। लेकिन देश में इन नुस्खों को नकारने और उन्हें गलत साबित करने की जैसे होड़ लगी हुई थी। ऐसा करते वक्त वे भूल गए कि वे देश के करोड़ों ऐसे लोगों की जीवनी शक्ति को खतरे में डाल रहे हैं, जिनकी प्रशिक्षित आधुनिक डॉक्टर तक पहुंच नहीं है। वे कम से कम इन नुस्खों के सहारे अपनी जिंदगी पर आए खतरे को टाल तो सकते हैं। दिलचस्प यह है कि इन नुस्खों का इस्तेमाल वे बड़ी राजनीतिक हस्तियां भी करती हैं, जो ऐसे कदमों का अवैज्ञानिक कहकर मजाक उड़ाती हैं। नीति- नियंता स्तर के राजनेता तक अपना यौवन और जीवनीशक्ति को बनाए रखने के लिए आयुर्वेदिक या यूनानी नुस्खों पर ही भरोसा करते हैं। डेंगू का जब कहर बढ़ा था, तब आयुर्वेदिक इलाज को उसके खिलाफ जारी अभियान में शामिल नहीं किया गया था। एलोपैथी ने डेंगू का इलाज तो कर दिया, लेकिन डेंगूमुक्त हुए लोगों के रुधिर का प्लेटलेट्स स्तर बढ़ नहीं रहा था, डेंगूमुक्त लोगों के जोड़ों में दर्द रहने लगा था। तब आयुर्वेदिक डॉक्टरों ने कुछ आयुर्वेदिक नुस्खे बताए थे, जिनके सहारे डेंगूमुक्त लोग पूर्ण स्वस्थ हो सके थे। चिकित्सा ज्ञान व समृद्धि के लिहाज से अव्वल अमेरिका, इटली, स्पेन, फ्रांस व जर्मनी कोरोना के कहर से त्रस्त हैं। लेकिन किसी ने उत्तरी ध्रुव के नजदीक स्थित देशों फिनलैंड, डेनमार्क या नार्वे की तरफ ध्यान नहीं दिया। लेकिन इन देशों में कोरोना वैसा नुकसान नहीं पहुंचा पाया है। इसकी बड़ी वजह है कि यहां की नीतियों में लोगों की जीवनी शक्ति बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। उन्हें वे उपाय बताए जा रहे हैं, जिससे वे कोरोना से दूर तो रहें ही, अपनी जीवनी शक्ति भी बढ़ाते रहें। इस्राइल और क्यूबा से भी ऐसी ही जानकारियां हैं। बेहतर होगा कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में इन पद्धतियों को भी युद्ध स्तर पर शामिल किया जाए। लोगों को बताया जाए कि आपातकालीन स्थिति में वे डॉक्टर से संपर्क जरूर रखें, लोगों से दैहिक दूरी बनाए रखें, लेकिन अपने घर के विज्ञान से अपनी जीवनी शक्ति बढ़ाते रहें।