जैसे ही देशव्यापी लॉकडाउन का तीसरा सप्ताह शुरू हुआ, हर तरफ इस बात को लेकर कयास लगाये जा रहे हैं कि चौदह अप्रैल के बाद देशव्यापी बंदी खत्म होगी? यदि हां, तो उसको हटाये जाने की प्रक्रिया कैसी होगी? क्या यह आंशिक होगी? ट्रेन, हवाई यात्रा के साथ क्या अंतर्राज्यीय आवागमन शुरू होगा? हालांकि प्रधानमंत्री पिछले दिनों संकेत दे चुके हैं कि लड़ाई लंबी चलेगी, थकना नहीं है। कई राज्यों की तरफ से भी लॉकडाउन बढ़ाने के संकेत हैं। यह चिंता इसलिए भी है कि देश में संक्रमितों का आंकड़ा पांच हजार पार कर गया है और मरने वालों की संख्या डेढ़ सौ के करीब है। मगर बड़ी चिंता आर्थिक मंदी से जूझ रही अर्थव्यवस्था की भी है। तमाम तरह की बंदिशों के चलते चिकित्सा उपकरणों व दवाओं का भी सामान्य उत्पादन नहीं हो पा रहा है। दूसरे रबी की फसल खेतों में तैयार है, जिसे अब टाला नहीं जा सकता। यदि अनाज खरीद की अनुमति दी जाती है तो मंडियों में सोशल डिस्टेंसिंग की समस्या जटिल हो सकती है। दूसरे दुकानें बंद होने से दुकानदारों का धंधा चौपट है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले कामगारों की भी बड़ी चिंता है, जो रोज कमाकर खाते हैं। यदि लॉकडाउन बढ़ता है तो इस तबके की दुश्वारियां बेहद चिंताजनक हो जायेंगी। इनको लेकर सरकारों से संवेदनशील व्यवहार की अपेक्षा है। निसंदेह केंद्र सरकार भी मंथन की स्थिति में है। फिलहाल सरकार अभी किसी निर्णय पर नहीं पहुंची है। जाहिर है बारह अप्रैल के आसपास देश में संक्रमितों के आंकड़ों और चिन्हित हॉट-स्पॉटों की स्थिति को देखकर ही सरकार निर्णय का मन बनायेगी। इसी कड़ी में उ.प्र. सरकार ने राज्य के पंद्रह जिलों में चिन्हित हॉट-स्पॉटों को 14 अप्रैल तक के लिए सील कर दिया है। ऐसे में सवाल यह भी है कि यदि सरकार किसी सीमा तक लॉकडाउन में छूट देकर अर्थव्यवस्था को गति देना भी चाहती है तो ढील का स्वरूप क्या होगा? निसंदेह जब हम दो-तिहाई लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी कोरोना संक्रमण के खतरे से उबर नहीं पाये हैं और हॉट-स्पॉटों का विस्तार जारी है तो पूरी तरह से लॉकडाउन हटाने का औचित्य नजर नहीं आता। भारत जैसे सघन जनसंख्या वाले देश में ऐसी अवस्था में अब तक अर्जित भी खोने का खतरा पैदा हो सकता है। ऐसे में कोई निर्णय लेने में राज्य सरकारों की भूमिका बड़ी होगी। निस्संदेह अगले चार-पांच दिन की स्थिति किसी निर्णय पर पहुंचने का आधार बनेगी। देश को महामारी से बचाना सरकारों की पहली प्राथमिकता है। फिर भी राज्यों में संक्रमण की स्थितियों को श्रेणियों में बांटकर कुछ निर्णय लिये जा सकते हैं। इसके बावजद सोशल डिस्टेंसिंग की नीति का सख्ती से पालन भी सुनिश्चित करना होगा। संकेत मिल रहे हैं कि स्कूलकॉलेज, सिनेमाघर व धार्मिक स्थलों पर फिलहाल निर्णय नहीं लिया जा सकता है। ऐसे में चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन खोलने पर ही विचार होगा। सरकार चीन द्वारा वुहान में लॉकडाउन हटाने के अनुभव का लाभ भी ले सकती है। जहां पांच दिन तक कोई मामला नहीं आने पर ही यह निर्णय लिया गया। वहां ढील शर्तों के साथ दी गई, मगर संक्रमण को ट्रैक करने के लिए ऐप का सहारा लिया गया। चीन में लोगों को ट्रैक करने के लिए बड़ी योजना है और नेशनल आईडी के जरिये हर मूवमेंट को ट्रैक किया जाता है, जो भारत में फिलहाल संभव नहीं दिखता। वहीं सिंगापुर का विकल्प सख्ती से सोशल डिस्टेंसिंग को लागू करना भी है। जाहिर है कि सरकार देश के पौने तीन सौ जिलों के संक्रमण के दायरे में आने के बाद उन इलाकों को सीमित राहत दे सकती है, जहां संक्रमण का कोई भी मामला प्रकाश में नहीं आया है।हॉट-स्पॉट इलाकों को अलग ढंग से नियंत्रित करना होगा। वहीं जांच का दायरा बढ़ाने की जरूरत है।
कब तक बंदी